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भारतीय सोच के बारे में हम क्या पसंद करते हैं क्या नापसंद करते हैं यह प्रश्न ही बड़ा आना और तिरछा है क्योंकि एकता में अनेकता और पूरा भारत तमाम तरीके की सभ्यता और तमाम तरीके के संस्कृतियों और ढेर सारी अपने धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप हमारा देश चलता है लेकिन एक बात जरूर कही जा सकती है कि हमारे देश में जो 70 साल की आबादी में एक तुष्टीकरण की घटिया राजनीति की जा रही थी उसको हम ना पसंद करते हैं तुष्टिकरण के बजाय पुष्टिकरण और उसके अलावा अगर कुछ किया जा सकता है तो देश को विकास के रास्ते पर लाने के लिए संघ के साथ बराबर का व्यवहार करना पड़ेगा नहीं तो हम को भारतीय सोच जो आरक्षण के माध्यम से विकास की बात करते हैं जो अनुदान ओं के माध्यम से विकास की बात करते हैं जो सरकारी बैंकों सरकार के धन और बैंकों के धन से जनता को ढेर सारी सुविधाएं जुटाने का काम करते हैं मुफ्त खोरी की आदत डालने का काम करते हैं इसको हम ना पसंद करते हैं यह भारतीय सोच जो हमारे देश की जनता की सोच है जो जितना ही हमको फ्री में खिलाएगा जितना ही हमको बैठे-बैठे हमको पैसा देगा वह हम हम उसको वोट करेंगे उसकी सरकार लाएंगे इस सोच को हम ना पसंद करते हैं
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