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आपका सवाल है कि मुस्लिम प्रेमी और हिंदू प्रेमी के बीच में क्या अंतर होता है पहला सवाल हम आपसे पूछते हैं कि वह प्रेम ही कहा जहां अंतर दिखना शुरू हो जाए यह मुस्लिम और हिंदू प्रेम का क्या मतलब है आप जब किसी बाहरी व्यक्ति या हिंदू या मुस्लिम से मिलते हैं तो आपको कभी ऐसा लगता है कि यह अलग तरह का प्रेम कराई अलग तरह का प्रेम कर रहा है और वैसे भी जिस प्रकार आने का कोई अलग अंतर नहीं होता है पानी जो शुद्ध पानी जो होता है उसका स्वाद साधारण ही होता है और यह अलग बात है कि बारिश के पानी का अंतर हो सकता है लेकिन अगर शुद्ध पानी है तो अंतर नहीं होगा वह उसके वह कहीं अंतर आपको दिखाई नहीं पड़ेगा आप चाहे जिस संस्थान का पानी पीते अगर वह पानी में शुद्धता अधिक होगी चिंता की मात्रा अधिक होगी तो वह आपकी शरीर में जाकर फायदा करेगा नंगे इंसान करें उसी प्रकार अगर शुद्ध प्रेम होगा सत्य प्रेम होगा वह हिंदू के द्वारा दिया गया हो चाहे मुस्लिम के द्वारा और एक बात और आपको हम बता दें हिंदू और मुस्लिम आपने आप शब्द जो दिया हुआ है तो यह जान लीजिए कि आप बहुत सारे हिंदू के घर में चले जाइए आपको लोग झगड़ा करते हुए बहस करते हुए बहुत से लोग मिल जाएंगे इसका मतलब प्रेम को जानते नहीं समझते नहीं और बहुत सारे ऐसे मुस्लिम परिवार भी आपको मिल जाएंगे जहां पर लोग एक दूसरे से बहस जहां पर दूसरे से लोग बहस कर झगड़ा करते हैं लड़ाई करते हैं तो समस्या क्या है समस्या प्रेम को जानने में है लोग प्रेम को समझ ही नहीं पाए और जो समझ जाते हैं उनके बीच में समझते हैं कम होती है और हमेशा ध्यान रखें कि प्रेम जहां होता है वहां विश्वास होता है वहां पर एक दूसरे के प्रति एक सच्ची भावना निष्ठा निष्ठा की भावना होती है और प्रेम देने का कार्य है प्रेम एक कर्म है जो किया जाता है जो दिया जाता है ना कि प्रेम एक एक एहसास है जो लिया जाता हो तो सबसे पहले इस आपको विशेषकर जानने का प्रयास करें कि हिंदू-मुस्लिम इसको डिवाइड मिलकर के बन्ना प्रेम को नहीं समझ पाएंगे अगर आपने यह शब्द लगा दिया कि हिंदू क्या है हिंदू का प्रेम और मुस्लिम का प्रेम और इस जाति के लोग उस जाति के लोग कैसे होते हैं अगर आपने आईडेंटिफाई करना शुरू किया प्रेम को तो कभी जीवन में सौ परसेंट आफ प्रेम को समझ ही नहीं पाए और मेरा यह मानना है जिसने यह सवाल पूछती है कि हिंदू का प्रेम मुस्लिम का प्रेम कैसा होता है तो समझ जाओ प्रेम को समझ नहीं पाया वह प्रेम को कभी समझ ही नहीं पाया जिसने इस प्रकार का अंतर दे दिया हो कि प्रेम का अर्थ क्या होता है इस प्रकार हवा चलती है भाई चलती है पानी जब हम पीते हैं तो हवा पानी जल आकाश अग्नि यह किसी इंसान के बीच का अंतर नहीं देखता तो उसको अपने हिसाब से अपना कार्य देती है जैसे अग्नि है उसको कोई मुस्लिम से हिंदू है उसका हाथ जलना है पानी है कोई भी व्यक्ति पिएगा या ना हाय का तो उसके शरीर पर वैसा ही होगा तो उसी प्रकार प्रेम है अगर आपने सबके प्रेम को स्थापित किया है अपने हृदय में तो आपको खूब ऐसी ही अनुभूति होगी जैसी होनी चाहिए और अगर आपने प्रेम के नाम पर कुछ और या प्रेम के नाम पर एक बेवकूफी को समझा कि लोग समझते हैं कि प्रेम का मतलब होता है कुर्बान हो जाना प्रेम का मतलब होता है कि प्रेम पाने के लिए प्रेमिका को पाने के लिए किसी भी हद तक चले जाना तो यह प्रेम थोड़ी है और दूसरी बात प्रेम का वास्तविक अर्थ होता है कि जो व्यक्ति अपने माता-पिता और अपने प्रेमी या प्रेमिका के बीच में अंतर ना करता हो वह प्रेम है कुछ लोग क्या सोचते हैं कि अगर उनके जीवन में प्रेमी-प्रेमिका आ जाते हैं तो माता-पिता से दूर होना शुरू हो प्रेम नहीं था वह मात्र एक आकर्षण था तो पहले ही तो यह समझ आया कि प्रेम कभी पक्षपात नहीं करता है 220 के दो बत्ती के बीच का अंतर नहीं देखता है कि माता-पिता को अलग तरह का प्रेम दे रहा है और कोई पत्नियां पति को अलग तरह का प्रेम दे रहा वह प्रेम नहीं है वह मात्र एक आकर्षण है उसके प्रति आकर खुशियों के प्रति आकर्षण जो सामने वाला हमें दे रहा है और मैं माता-पिता से नहीं मिलाया अपने प्रेमिका प्रेमी से नहीं मिला तो प्रेम कभी अंतर नहीं होता है और एक चीज सबसे बड़ी जो प्रेम करते हैं माता-पिता और अनजान के बीच में भी अंतर नहीं देखते जो व्यक्ति वास्तविक प्रेम करते हैं वह अपने माता-पिता और किसी अनजान के बीच में भी अंतर नहीं देख पाते उनको लगता कि दोनों एक ही तरह के लोग हैं तू बातचीत प्रेम वह होता है लेकिन जो जो व्यक्ति केवल अपने माता-पिता से प्रेम करता हो या अपने बहन भाई से प्रेम का तो या अपने पति पत्नी से प्रेम करता हूं लेकिन अनजान के लिए एकदम एकदम दयालु ना होता हो तो वह प्रेम नहीं है वह अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए जो मिलने वाला व्यक्ति है उससे उसके पति उसका आकर्षण है जैसे क्या होता है कि हमें परिवार से सुख प्राप्त होता है परिवार के लोगों से में सुख प्राप्त होता है उनकी सेवा प्राप्त होती है उनके द्वारा बनाया हुआ भोजन प्राप्त होता है उनकी सेवा प्राप्त होती है तो हम उन से प्रेम करना शुरू कर देते हैं अनजान से मुझसे प्रेम नहीं करते तो वह प्रेम थोड़ी है वह तो जिस व्यक्ति से आप को आप आपका काम निकल रहा है आप उसको परिंदे रहे हो तो वह प्रेम नहीं है वह मात्र एक अपनी इच्छा पूरी करने का साधन बना लिया गया तो प्रेम का वास्तविक अर्थ नहीं होता है जो व्यक्ति अनजान और अपनों के बीच में अंतर ना देखता हूं जिसके लिए दोनों व्यक्ति समय बराबर हो उसके बाद आवश्यकता है कहीं-कहीं इंसान को मजबूर करती हैं अपनों के प्रति ज्यादा हमारा अनुभूति रखने में लेकिन जहां पर बड़े चीजों की बात आती है वहां पर इंसान को अंतर नहीं करना चाहिए उसके बाद जो प्रेम करता है वह किसी इंसान से प्यार करता है ना कि उसकी अच्छाई से प्यार करता है जो किसी इंसान की अच्छाई से प्रेम कर रहा है वह अच्छाई से प्रेम कर रहा है ना कि इंसान से प्रेम कर रहा है ओके अच्छा जी से प्रेम करने वाला व्यक्ति भाई को स्वीकार नहीं कर पाता स्कूल अगर उसके अगर उस व्यक्ति को दूसरा की में हल्की सी बुराई तक जाती है तो वह उस बात को लेकर बैठ जाता है या बैठ जाती है तो यह प्रेम है यह माता अच्छाई के प्रति आकर्षण है और जगह की प्रेम करते हैं ना वह सामने वाले की अच्छाई को भी प्रेम करते हैं और बुराई को भी संभव स्वीकार करते हैं तो वह प्रेम होता है और प्रेम करने वाला व्यक्ति माह अवश्य करता है भीतर से माफ करता है यह की छड़ी माफ कर दे वह बात दिमाग में रख कर बैठा रहे और मौका आने पर फिर उस बात का बदला ले वह प्रेम नहीं होता है और वह माफ नहीं कर सकता जिस व्यक्ति का दिल बड़ा होता है जो व्यक्ति अपने ऊपर समस्याओं को लेकर दूसरे व्यक्ति को प्रेम देने की शक्ति रखता हो वही प्रेम और ध्यान रहे प्रेम लेने का नहीं देने का नाम है इसीलिए जो व्यक्ति प्रेमी होते हैं वह व्यक्ति सत्य के रास्ते पर भी चलते हैं विश्वास होता है जहां प्रेम तामा विश्वास भी होता है इसलिए हिंदू मुस्लिम के बीच में इसका अंतर्नाद 1 हिंदुओं में बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो आतंक मचाए हुए हैं और मुस्लिम में भी ऐसे लोग हैं जो अपने परिवार में आतंक मजाक के बैठे हुए हैं तो प्रेमी और प्रेमिका से यहां पर कोई अंतर नहीं है कि आप किसी कैटेगरी में इसको डिवाइड करते हैं प्रेम प्रेम होता है वह चाहे हिंदू का हो मुस्लिम का सिक्का हो इसाई का हो जानवर का हो या किसी का भी हो प्रेम प्रेम होता है अगर कोई ऑडियो अच्छा लगे तो कमेंट लाइक करें कुछ भी सवाल के लिए आप मुझसे सवाल पूछ सकते हैं धन्यवाद
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मुस्लिम प्रेमी प्रेमी अपने इस्लाम धर्म के लिए कटनी मरने को तैयार रहते हैं और हिंदू प्रेमी लंबे होते हैं फिर भी वह अपने धर्म के प्रति इतने जागरूक नहीं हैं उनकी नम्रता का ही फायदा उठाकर मुसलमान उन्हें परेशान करते आ रहे हैं उन्हें थक जा रहे हैं
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मुझे नहीं लगता मुस्लिम प्रेमी और हिंदू प्रेमी में कोई अंतर होता है क्योंकि आप जब किसी को प्रेम करते हैं आप उनकी जाति धर्म और दे को देखकर प्यार नहीं करते क्योंकि प्यार एक इमोशन इमोशन है एक भावना है जो किसी के साथ जुड़े इमोशन कनेक्ट होती है तो इस में जाति-धर्म पौधे का कुछ भी लेना देना नहीं है तो मुझे नहीं लगता हिंदू प्रेमी में और मुस्लिम प्रेमी में कोई अंतर होता है
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देखें मेरी सोच पर यहां पर थोड़ी सी अलग है मुझे नहीं लगता कि मुस्लिम प्रेमी और हिंदू प्रेमी में कोई भी अंतर होता है अगर आप किसी से सच्चे दिल का प्यार करते हैं या आप किसी के साथ आपका थोड़ा प्यार सच्चा नहीं है उन दोनों में जरूर फर्क हो सकता है पर एक मुस्लिम प्रेमी और हिंदू प्रेमी में कुछ फर्क नहीं होता अगर आप किसी को प्रेम करते हैं तो वह एक दिल की बात ना होती है वह आपका अंतर्गत एक पर्सनालिटी होती है जहां अंतर आता है पर उसमें हिंदू या मुस्लिम होने में कोई ज्यादा फर्क नहीं होता है हां थोड़ा कल्चर का जरूर थोड़ा फर्क है जिसे मुसलमानों के अंदर दो तीन शादियां करना हो जाता है पर हिंदुओं में ऐसा बिल्कुल भी इसको आप मानते हैं तो जहां थोड़ा बहुत फर्क आ जाता है पर अगर देखा जाए प्रेमी इधर की बात हुई जाए तो कोई ज्यादा फर्क नहीं होता कहां है अगर कुछ ऐसे मुस्लिम प्रेमी होते हैं जो अपनी बीवियों को सही से नहीं रखते किसी एक को अच्छे से नहीं टाइप करते 34 विलियम लाइट है वहीं पर कई ऐसे हिंदू प्रेमी भी होते हैं जो फेयर चलाते हैं यह जो अच्छे से काम नहीं कर सकता मुझे पता है कि यह किस तरीके का प्रयोग करते हैं अपनी प्रेमिका से उस पर निर्भर करता है ना कि आपकी हिंदू और मुस्लिम होने पर
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देखें मुझे ऐसा लगता है कि अगर आप किसी से प्रेम करते हैं किसी को सच्चे दिल से चाहते हैं तो यह बिल्कुल फर्क नहीं पड़ता कि उसका रिलीजिंग क्या है मतलब प्रेम का और रिलीजन का आपस में कोई लेना देना नहीं है चाहे वह हिंदू प्रेमी हो चाहे वह मुस्लिम प्रेमी हो या किसी और रिलीजिंग आप रेडी हो प्यार तो आखिर प्यार है इसमें दिल्ली जिनका इसमें का स्तर में कीट का कुछ लेना देना नहीं है अगर आप किसी से प्रेम करते हैं आप उससे वैसे ही उससे उसी तरह से बर्ताव करेंगे आपसे प्यार से रहेंगे आप उसका ख्याल रखेंगे आप उसके सुख दुख में उसका साथ रहेंगे फीलिंग्स है जो एक इंसान में हिंदू की यही करेगा और मुस्लिम भी वही करेगा मुश्किल भी अपने प्रेमी का साथ देगा अपने प्रेमी की शेयर करेगा और हिंदू भी यही करेगा तो इसमें कुछ डिफरेंस मुझे नहीं लगता कि कुछ
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विजय जी चाहे प्रेमी मुस्लिम हो हिंदू हो क्रिश्चियन हो या सुख हो या किसी और देश का हो किसी और प्लांट का हो मुझे नहीं लगता कि नहीं विष्णु को भी फरक होता है कि प्यार एक ऐसी चीज है जिसको कभी भाषाएं धर्म जाति देश को भी कोई बात नहीं पाया तुझे प्यार को कोई बात नहीं पाया जब प्यार सबसे पवित्र चीज इसे बोलते हैं तू प्रेमी में क्या डिफरेंस हो सकता है आप सोचिए ऐसा तो नहीं होगा ना सर जी जो हिंदू प्रेमी है वह अपनी गर्लफ्रेंड को ज्यादा प्यार करेगा या अपनी प्रेमिका को सागर प्यार करेगा और मुस्लिम प्रेमी कम करेगा यह तो पॉसिबल नहीं है तो हिंदू प्रेमी मुस्लिम पर भी में ऐसा कोई खास फर्क खास तो क्या मेरे साथ तो तो कोई भी फर्क नहीं होता उतना ही प्यार कोई जनवरी हिंदू प्रेमी भी कर सकता जितना ही कोई मुस्लिम प्रेमी करेगा तो ऐसा कुछ फर्क मेरे ध्यान में तो है नहीं
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