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सात्विक राजसिक और तामसिक में फर्क यह है कि आपको माता हर कभी मत करिए और जो प्याज और लहसुन का प्रयोग लोगों ने विंदू ने छोड़ दिया है एक साथ इस तरह सीता के नाम पर उसको अपना ही उसको को भोजन के साथ अच्छी तरह से खाइए आपको सभी ने एक बड़ी शक्ति मिलेगी कोई मांसाहार नहीं है क्या उसको राजसिक तामसिक नहीं समझ कर किया तो साथ पिक्चर यह उसकी राशि काम सीख उसकी परिधि की सीमा में रहकर के कुछ अच्छे अच्छे ही साकारी पदार्थों का आप लोगों ने जो त्याग कर दिया है एक विकृत विचारधाराओं के नाम पर उस पर छोड़िए सा सिक्का और राष्ट्रीयता और उसे बिल्कुल वैज्ञानिक आहार पद्धति यह है कि आप जीव जंतुओं का विनाश करके उसका भोजन मत करिए आप जो मुद्दा ना फल सब्जी डीजे कठोर में देरी जो बोलते हैं उसका उसका प्रयोग करिए भारतीय पद्धति में कोई अगर अनुसार आप लोग भोजन बनाई हो भोजन को खाइए भारतीय पद्धति का भोजन आपको सभी के अंदर सभी प्रकार की शक्ति देते हैं और सभी को बहुत शशि कपूर और पवित्र और अच्छे ढंग से बना करके रखते हैं आप लोग इसका प्रयोग करिए और अच्छे वरसानी के बलशाली बनने और अब देखिए कि हिंदुओं की जो मातृशक्ति थीम प्राचीन काल की जो दीदी का एक थी और देविका ओके पास हथियार थे और देविका उन्हें महारत आइए सरस्वती असुरों का विनाश किया था उन्होंने कभी मांसाहार ने किया था कभी शराब नहीं पिया था तो यह देवी के नाम पर लोग शराब पीते हैं और उसके बकरे टुकड़े करके काट करके उसका खाना खाते हैं वह जो भेजता है उसको भी सरकार के खाते हैं आपके जो देवी देवता के वाहनों को मारकर काटकर के हिंदू लोग खा जाते हैं तो यह शुद्धता है और तामसिक था वहां पर आती है और आपकी विचारधारा और अधर्म का विनाश हो चुका है और विनाश होने की तैयारी में आप लोग जाएंगे यदि ऐसी है विचारधारा अपनाएंगे तो तो आप सात्विकता का जो है मूलभूत हमने जो भेज बताया है उसके अनुसार आप खानपान देखिए इसमें जो प्याज और लहसुन का उपयोग मत करिए उसे शरीफ में भयंकर सकती आती है अरे भाई रिश्तो को विनाश करने में जीवन में सारी परियों सर जी मां आप लोग काम सीखता वाली मांसाहार का सेवन मत करिए और लोगों के ऊपर आर्थिक रूप से लूटपाट मत चलाइए कि आपने एक करोड़ों का और 100 करोड़ का फायदा लिया और लोगों को गरीब बनाया यह मत करिए आप जो प्रजा है उसको सहायता करिए जो जो हिंदू दो एससी एसटी में या तो दूसरे गरीब वर्कर दोगे और लोगों को आपका व्यापार धंधा का लाभ पहुंचाए और उनके जीवन स्तर को ऊपर उठाने के लिए भी अप्रैल पर करिए ऋषि दयानंद वेद धर्म का व्यवस्थापन करने का संगठन बनाया है आर्य समाज नाम का उसकी विचारधारा को जानिए सत्यप्रकाश ऋग्वेद भाष्य भूमिका संस्कार विधि के जानकार के उसके परिणाम में आपका शरीर बहुत ही सुदृढ़ होगा आप की विचारधारा तेज बनने की विचारधारा का प्रकाश आप दुनिया भर में चलाएंगे और उस सच्ची शास्त्री करता तभी प्रकट होगी आप हमारे आर्यसमाज जावेद hospitals.com को अच्छी तरह से पढ़िए सुनिए और हमारा संपर्क करें धन्यवाद
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सात्विक आहार व है जिसमें हमारी बुद्धि जीत शास्त्री के लिए अमी की शाकाहारी भोजन सुषमा स्वराज ने निरामिष तामसिक में अंडा मीट सासारिए तामसिक आहार और ऋतिक में ज्यादा यह मिलता लेकिन नासिक में ज्यादा मिलता हूं साले शाही का मासिक वेतन
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तामसिक राजसिक ही हमारी योग में कैटेगरी है तीन तरह की नेचर होता है पूरे ब्रह्मांड में भी विश्वकर्मा मतलब मनुष्य कभी नहीं चल रही तीन तरह की कैटेगरी में बांटा गया है और भोजन का भी तो साथ वह होता है जो भी जल्दी हजम हो जाता है और लाइट होता है वह साथी होता है जो थोड़ा सा चटकदार दिखा देता है और जो हमको देता है जाने अपराधी प्रवृत्ति में डाल देता है अब आप देखिए जो भी ड्राइंग करते हैं किसी का मर्डर करने जाते हैं वह अल्कोहल की कर जाते हैं क्योंकि उनके एकदम को हल किया जो नॉनवेज खाता है वह बड़ा क्रूर व्यक्ति होता है पावर अटैक आर्ट अटैक न्यूज के नीचे होता है तो यह चीज है जो है वह तामसिक जाती है
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बेसिकली जो सात्विक भोजन होता है शरीर के पोषण के साथ-साथ मन को भी जो है प्रश्न करता है जैसा कि आयुर्वेद में बताया कि सभी देशवासियों को एकदम मिट्टी के अनुयाई आयुर्वेदिक दोहे प्रश्न करना उसको भी नियंत्रित करना उसको भी पोस्ट करना ऐसा माना गया है और ऐसा करने पर ही जो होता है वह सुखमय और निरोगी रहता है जुरासिक भोजन होता है वह जो हमारे शरीर में जो है उसका करता है गर्मी पैदा करता है जिसके कारण जो है इस जन्म में जो रूप होते हैं चित्र सोने वाले रोग वह हो जाते हैं इसलिए जो है और आशिक भोजन अमित बताया गया इसके अलावा होता है रचने में भारी होता है और शरीर में जो है उसको बढ़ाने वाला हो रहा आलस्य इनको पैदा करता है रितिक भोजन को भी नहीं लेना चाहिए
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जैसे की चंचलता रात के बिना नेट के बिना चलता नहीं होगी इंद्र का अपने विषय पर चिंतन योग्य योग्य बिल्कुल सहयोग नहीं होना यह कहलाता है प्रज्ञा अपराध शाखा ने सब्जेक्ट से प्रॉपर सहयोग होना सात्विक भावनाओं में सहयोग होना अपने विषय से नाता है आपका प्रभाव बिल्कुल ही सहयोग नहीं होना
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साथी कहा वाला व्यक्ति किसी से द्वेष नहीं सकता अपना कार्य स्वछता पूर्वक स्वस्तिका सामान्य कार्य कर सकता है क्लासिक व्यक्ति जो है युद्ध में उसको खोज जल्दी आएगा और वह चढ़ाई चले के काम क्या-क्या करेगा काम शिकार वाला व्यक्ति जो सेवन करेगा वह गिरा रहेगा उसमें उदासी रहेगी डिफरेंस लेकर टिकट रहेगा
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हम का क्वेश्चन है राजसिक तामसिक और 71 मैं क्या अंतर है दीक्षित सात्विक भोजन खाना है उसके नाम से ही प्रतीत होता है सात्विक भोजन करने वाला व्यक्ति सही में स्थापित प्रवृत्ति का होता है और राजसिक भोजन जो होता है उस सही चीज है क्यों राजाओं के लिए काफी काफी धनवान व्यक्ति के लिए उचित होता है जिसमें बहुत सारी चीजें संलग्न होते हैं गेहुआ मक्खन हुआ आपको बहुत सारे तरह के चीज होते हैं जो कि राजसी प्रवृत्ति के भोजन करने के लिए बने हो और तामसिक तो आप समझ ही रहे तामसिक भोजन में मीट मछली अंडे उसके बाद वहीं अगर का समावेश होता है तो व्यक्ति अति क्रोधी उसका प्रकृति बहुत ही खतरनाक टाइप का अपराधी प्रवृत्ति का व्यक्ति होता है क्योंकि खाना एक ऐसा चीज है कि जैसा आप खाना खाएंगे वैसे ही आपके प्रति बनेगी यह हम नहीं कह रहे हैं बहुत पहले से मुहावरा चले आ रहा है जैसा खाओगे अन्न वैसा रहेगा मन जैसा आप भोजन करेंगे वैसा ही आपका विचार होगा वैसा ही आपका आचरण होगा इसलिए भोजन से ही उस व्यक्ति के अंदर क्या गुण पैदा होगा और भोजन ही बता देता है भोजन करने वाला व्यक्ति ठीक होगा राष्ट्रीय भोजन करने वाला व्यक्ति राजा के समान होगा राजा भी कुछ कम नहीं होते हैं अभी छोटी सी गलती पर बड़े-बड़े 10 लोगों को दंडित कर देते और तामसिक जिसमें तमाशा आशा तामसी आचरण वाले व्यक्ति ही अपराधी बन जाते हैं केवल बन जाते हैं बदमाश बन जाते हैं उनमें दोस्त नहीं होता है उनके भोजन में दोष होता है जिसके अपराधी बन जाते हैं इसलिए तामसिक भोजन व्यक्ति को करना ही नहीं चाहिए तामसिक भोजन करने से छनछन व्यक्ति को क्रोध का समावेश मस्तिष्क में होता है और रो क्रोध के वजह से कुछ भी करने के लिए हत्या करने और कराने के लिए उतारू हो जाते हैं इसलिए व्यक्ति को भोजन करना चाहिए ना कि राजसिक और तामसिक दूसरी बात यह है राजसिक और तामसिक भोजन में एक और चीज देखने को पाया गया है अगर व्यक्ति की स्थिति अच्छी नहीं है आवारा प्राणी राजसिक भोजन करना शुरू कर दिए तो आपके दैनिक स्थिति खराब हो जाएंगे वही स्थिति तामसिक भोजन में भी है कि व्यक्ति के पास ऐसा नहीं है साधारण कमाने वाला है अगर तामसिक भोजन करना शुरू कर देगा तो यह सब सारे राजसिक और तामसिक भोजन काफी मांगे भजनों में इनका गणना की जाती है इसलिए व्यक्ति को आर्थिक स्थिति भी बहुत जल्दी खराब हो जाती है भोजन करने से राष्ट्रीय करता हमसे क्योंकि इसमें काफी पैसा खर्च होता है इसलिए जिससे खाने में जिससे भोजन को करने में काफी पैसे खर्च निश्चित तौर पर उसका रिजल्ट भी वैसा ही होगा इसलिए व्यक्ति को सात्विक भोजन ही करना चाहिए ना कि राजसिक और तामसिक धन्यवाद
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नमस्कार आपका सवाल है सात्विक राजसिक और तामसिक में क्या अंतर है तू सात्विक सात्विक शब्द सत्र से आया राशि शतरंज और तम इन तीनों से ही सात्विक राजसिक और तामसिक यह शब्द आए तो सात्विक राजसिक और तामसिक इनका हम इस्तेमाल करते हैं और हार के साथ ही कहा राशि का हाल तामसिक आहार सात्विक आहार जो सात्विक आहार होता है वह जैसे कि हम जैसे कि न्यूट्रल मिलेगी जो सब गुणों से रहित हो सात्विक आहार है सात्विक आहार हमारे मन मस्तिष्क को शांत रखता है और राशि का हाल है उसके बाद आता राशि का हार राशि का हार रजत जिसके अंदर भरा पड़ा है उसमें अलग-अलग तरह की पोस्ट डालते हैं जिन जिन जिन खाने को हम ग्रहण करते हैं इस राशि का हर को हमारे ग्रहण करने के बाद हमारे अंदर का जो गुण होता है वह रजोगुण दिखा अभी कहां खाना खाया तो साथी खाने से हमारे अंदर की होती है और तामसी तामसी खाना में आता है मांस मदिरा किस प्रकार की इससे हमारे हमारे अंदर ही आलस्य आने से और राम सीता बढ़ती है तो इन तीनों में यही अंतर है सात्विक राजसिक और तमाशा
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हरि ओम नमस्कार कृष्णा सात्विक राजसिक और तामसिक में क्या अंतर है होते हैं हमें गुण भी होते हैं तो तनु और ऋषि से हमारा मुझे भी कहीं ना कहीं जुड़ा हुआ है और राशि की कैटेगरी का गंध रहित गंध नहीं होती और हम उसका सेवन मन की शांति के लिए कर सकते हैं हमारे मन को प्रभावित कर हमारे मन के विचारों में एक नई ऊर्जा को लेकर आए पूजन करते वक्त हमारा मन प्रसन्न होता है आज से रूप में हम देख पाएंगे अच्छे हो जो होता है और सात्विक का मिलाजुला रूप में बहुत सी ऐसी चीजें होती है जो हमारे मन में एकता मचलता का भाव प्रकट कर दिया हमारा मन शांत नहीं रहा था उससे तुम अपनी जीभ के स्वाद हेतु लेते हैं और उससे हमें कोई लाभ नहीं होता उससे मन के आशीर्वाद के लिए होता है हर नंबर पर हम बात करते हैं तामसिक तामसिक में आ जाती जितनी भी उमस भरी मस्त मस्त मतलब अंधकार जो मन में अंधकार को पैदा कर दे होता हमसे इतनी भी तली हुई चीजें हैं जितना भी जंग फूड हो गया हम जितना भी अपने स्वाद ही तू खाते हैं स्वास्थ्य की दृष्टि से ना खाते हुए अपने स्वार्थ की दृष्टि से खाते हैं वह तामसिक भोजन में आ जाता है स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा नहीं है उसको तांत्रिक भाग में रखा जाता है वह हमारे मन में एक निराशा का भाव पैदा करता है मन में आलस्य को लेकर आता है मन के विचारों को बहुत ही पवित्र भाग देता है मन में हमेशा हमेशा ही हलचल और विकारों को पैदा करता है तू ही तामसिक भोजन के गुण होते हैं तो यह सारे इन तीनों का डिग्री सुनते इस प्रकार से
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