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प्रश्न आ रहा है जीवन सच है या झूठ यह बहुत ही जबरदस्त प्रशन है क्योंकि जिंदगी जब तक जीवित है तो जीवन है और इस जीवन की प्रक्रिया में हमें जानती हो रही है वह इस दौर में व्यतीत होता चला जा रहा है एक सफर है कट रहा है तू जब यह भी माना जा रहा है कि जीवन का अंत होता है यानी कि शरीर का तो यह सफर माही विलय हो जाता है लेकिन अगर इस मायने में हम सोचे तो जीवन एक झूठा है अर्थात कोई इसमें वास्तविक सारांश नहीं रह जाता है लेकिन यह है कि कुछ अनुभव के लिए यह हमारी रिसर्च की भूमिका मिलती है एक प्रयोगशाला है जिसका हम प्रयोग कर सकते हैं और उसके बाद जो अपनी स्थिति अलग है जो ज्ञान की वह भेजने के कारण ही हम आ गए पर्याप्त हो सकते हैं क्योंकि सर रुको माया के और शरीर के संवेदनाएं जो है और सांसारिक विषयों का आरोपित भाव है उसमें अवधारणाएं प्रणालियां है जो हमारे को अवगत कर के स्वरूप को निर्धारित बनाकर के विस्थापित किए रहती है और यह प्रकृति है जो काल की दशा में इतने परिवर्तनशील होता रहता है और यही चीज है कि और उसमें इस अभिक्रिया के अंदर हमारे को खुशी गम और भी चीजों का शरीर और जीवात्मा के माध्यम से महसूस होता है लेकिन उसके पृष्ठभूमि में कुंडली शक्ति जो चर्च चक्रों के अंतर्गत निहित है अति सूक्ष्म और दूसरे दिन के अंदर निर्वाण पद में आधारित होता है और यह जरूरी नहीं है कि सब को उस अनुभूति का फैसला या ज्ञान हो सके क्योंकि जब तक वह भी मूर्खता हटती नहीं है तब तक हम छातीत रूप से प्रभाव में रहते हैं जब उसे याद करके वह इस तरह आता है और वह भी एक कमाई का स्रोत होता है जो बचपन से संस्कार के अनुरूप आध्यात्म की ओर से गत सप्ताह में भरते हैं तो वह प्लेटफार्म मिलता है और यह सब चीज एक प्रयोग दशा में हमारे अंत करण में और हाथों में सिद्धहस्त होता है और इसमें एक खास लगाव नहीं रह जाता क्योंकि उसको निर्माण पद में स्वयं अपने वास्तविक शरीर के कारण शरीर का ज्ञान हो जाता है तो इस दशा में जितने भी दिमाग में मानसिकता बंधन है वह निवृत्त रहता है वह प्रफुल्लित रहता है और किसी भी प्रभाव दो उसमें नहीं अपने वैकल्पिक संभावनाओं को आया अनुभूतियों को बढ़ाता है वह उसे कटकर करके दूसरों का इजाद करता है जाति सूची परमाणुओं से भी अत्यंत सूक्ष्म जो चेतन धारा है उसके अलंबन में वह आत्मसात करता है वहां एक ही पूर्ण मात्र में ही सारा व्यवहार घटित होता चला जाता है इसलिए जो अवस्थाएं हैं जिन्होंने खोज लिया है अपने आपको वहां पहचान लिया है और कि मैं अपने आप को बरकार रखा हुआ है वही जीवन के मूल्य को निर्धारित कर सकता है कि साथ है क्या शर्त है लेकिन यह भी भ्रमित और दुख में होना या असत्य प्रणाली में गिनती आती क्योंकि उसकी आत्मा का स्वभाविक जो स्वरूप है उस पर प्रत्यक्ष में दिखता है जिज्ञासु प्राणी है शिक्षण रहता है और प्रकृति के उल्लास में अपने आप को प्रवाहित रखना चाहता यह स्वभाविक गुण धर्म क्रिया है और शेर विपरीत जो चीजें अवधारणा में बनाते हैं तो वही हमारा संक्षिप्त रूप होता चला जाता है तो उसकी गेहूं के साथ घुन पिसता है तो यही स्थिति आ जाती है जीवात्मा के प्रति तो जीवन सच या झूठ तो इस बारे में हम अपने ज्ञान की स्थिरता पर ही इसको निर्णायक नियम बना सकते हैं क्योंकि हर एक के चैप्टर सब के विषय में नहीं बन सकता है कि हर इंसान उस रूप को समझे कि हम वास्तविक है कि और यह जो मायावती में हमें दुख सुख छोटा बड़ा उमर और फिर प्रणवीर तो इत्यादि जो भी स्पष्ट साक्षात्कार आंखों के द्वारा शरीर के द्वारा हो रहा है वह सब भ्रांति स्वरूप रह जाता है क्योंकि शरीर भी नष्ट होता है तो उसके साथ संसार काव्या संसार का भी डिलीट हो जाता है तो लेकिन फिर भी अस्तित्व में वह कहीं ना कहीं जिला का स्वरूप का निर्धारण के ही रहती है क्योंकि जगत में जो भी कुछ वरदान वर्तमान की दशा में हो रहा है इसीलिए हो रहा है कि अच्छे कर्म क्यों करे जाएं पाप कर्म ना करे जाए पुणे में ही हम आधारित रहे धर्म के और सच की विवेचना पर्स क्योंकि वही मुख्य रूप से हमें ज्ञात कर आता है कि यह ज्ञान सच्चा है और यही हमारे चित्र बच्चों को धो देता है निर्मलता बनाता है तो उसमें स्वभाविक था स्वरूप का प्रकट होता है तो यही चीज है कि इंसान को कुछ ना कुछ उद्धृत और क्षमता की ओर बढ़ना चाहिए और यह अपने अंदर एक अनुसंधान 120 बनता है जो लोग इसको प्रयोग में लाते हैं तो उस जीवन को व्रत में बदल देते हैं अर्थात जो मीठा है जो मर्द धर्म है जो परिवर्तनशील है वह तो होना ही है प्रकृति का लेकिन स्थाई तो घर है वह धर्म का है आखिर पत्र के बारे में तो इसके ऊपर अनुभूति के स्तर पर आप अपने आप का अवलोकन करें तो महसूस हो जाएगा मैं यह कहना चाहता हूं सही सा सुरक्षा पर है धन्यवाद मैं जीपीयू वोकल पैक फादर इस वक्त अपने आप को शुभकामनाएं दे रहा हूं
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