चेतावनी: इस टेक्स्ट में गलतियाँ हो सकती हैं। सॉफ्टवेर के द्वारा ऑडियो को टेक्स्ट में बदला गया है। ऑडियो सुन्ना चाहिये।
बहुत ही उचित प्रश्न और एक मार्मिक प्रश्न आपने पूछा है भगवान खाते क्या है एक शब्द में अगर मैं कहूं तो भगवान शब्द के उच्चारण से ही आपको यह ज्ञात हो जाएगा कि भगवान भाव के भूखे हैं भगवान हमारा केवल भाव लेते हैं आज के समय में हम जिस प्रकार से भगवान को भोग लगाते हैं उसको जरा आप विचारों से सोचिए अगर हम भगवान को भोग लगाने के लिए कोई भी चीज जो हम भगवान को चढ़ाते हैं देते हैं यह हमारा एक तरह का प्रतीक शास्त्र माना जाता है प्रतीक माना जाता है कि मूर्ति को हम भगवान मानते हैं और उनको हम भोग अर्पण करते हैं लेकिन उसको गरबे ज्ञानिक आधार पर आप देखें आप अगर भगवान के लिए भी निकाल रहे हैं तो वह पहले आपके हाथों में लगते भगवान को अगर आप चंदन लगा रहे हैं तो वह चंदन पहले आप अपने हाथ से स्पर्श करते हैं कुछ भी अगर आप कर रहे हैं जो भगवान के लिए आप कर रहे हैं वह आप से होकर गुजरती है उसमें आपका कितना भाव है उस भाव को ही मात्र भगवान भोग लगाते हैं और बाकी चीजें आपके लिए यथास्थिति बनी रहती है जिस तरह से हम जो भोग लगाते हैं आप सोचते होंगे कि भगवान आकर के खाने हैं भगवान उस रोटी को तोड़ नहीं रहे हैं भगवान दाल को पी नहीं रहे हैं तो भगवान यह सब कुछ नहीं करते उसमें अर्पण जो आप का भाव है किस भाव के साथ आप उनको अर्पिता कर रहे हो उसका भोग लगाते हैं मैंने संतों के मुख से एक कथा सुनी है मैं आपको सुनाता हूं छोटी सी कथा ध्यान पूर्वक सुनिए गा बहुत ही प्रासंगिक विषय है एक व्यक्ति था जैसा कि आज हम हिंदुओं में एक विचारधारा होती है कि हम गणेश जी को भी मानते हैं लक्ष्मी जी को भी मानते हैं तो उसे किसी ने सलाह दिया कि अगर आपको पढ़ाई में पास होना है और तो आप गणेश जी की पूजा करें तो आप पास हो जाएंगे उस व्यक्ति ने पूरे साल गणेश जी की पूजा क्यों फेल हो गया उसने बंद किया भगवान को लपेटा उठा कर रख दिया किसी कोने के कांड में कौन है मैं हल का सचित्र फिर उसको सलाह दिया गया किसी ने कहा कि आप सरस्वती जी के पूजा करिए वह ज्ञान की देवी है आपने गलत किया इसलिए आप फेल हो गए फिर उसने अगले साल से सरस्वती जी की पूजा आरंभ कर दी फिर वह जब दिल्ली में को दिया लगाता अगरबत्ती लगाता तो देखता 1 दिन क्या हुआ की हवा का प्रवाह इस तरह से चल अगरबत्ती तो सरस्वती जी को दिखा रहा था सरस्वती मां को दिखा रहा था लेकिन उसके युद्ध हुआ था वह उड़ करके उस कांड की ओर जा रहा था जहां पर गणेश जी बैठे हुए थे जहां पर गणेश जी की मूर्ति बड़ा तेज क्रोधित हुआ का काम तो मेरा कुछ किया नहीं और धुआं की सौगंध मैं आपको क्यों दूं उसने क्या किया गणेश जी को वहां से उठाया ले जाकर बक्से में बंद किया आज आपने मेरा कोई काम नहीं किया तो आपको मेरे से अगरबत्ती का स्वाद चखने का भी कोई हक नहीं है तो यहां पर संत बताते हैं कि फिर गणेश जी अवतरित हुए उसके उस भाव से प्रसन्न हुए क्यों यहां पर भाव आप समझ जाएगा उस व्यक्ति ने क्लोज दिखाया हालांकि भगवान के ऊपर लेकिन उसका भाव क्या था कि आप वास्तविक में हमारे अगरबत्ती की सुगंध ले रहे हैं तो भगवान को स्वयं वहां पर आना पड़ा ईश्वर को स्वयं वहां पर अवतरित होना पड़ा मुझे नहीं पता जाए कि यह घटना सच्ची है झूठी है क्या लेकिन यहां पर भाव सकते हैं अगर आप का भाव है तो आप ईश्वर का परावर्तित रूप तमाम समय पर कई चीजों में भिन्न-भिन्न रूप में भी देख सकते हैं इस कहानी के भावार्थ में आप इस चीजों को समझ सकते हैं कि भाव ही भोजन भाव नहीं है भगवान हमारा भाव ही अर्पण स्वीकार करते हैं और भाव ही खाते हैं और भाव के भूखे
Vokal App bridges the knowledge gap in India in Indian languages by getting the best minds to answer questions of the common man. The Vokal App is available in 11 Indian languages. Users ask questions on 100s of topics related to love, life, career, politics, religion, sports, personal care etc. We have 1000s of experts from different walks of life answering questions on the Vokal App. People can also ask questions directly to experts apart from posting a question to the entire answering community. If you are an expert or are great at something, we invite you to join this knowledge sharing revolution and help India grow. Download the Vokal App!
About .Privacy Policy .Terms & Conditions .Contact Us .Blog .Sitemap . Compliance Copyright Vokal 2021 © |