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नमस्ते दोस्तों मेरी रानी डॉक्टर प्रिया झा के तरफ से आप सबको दिन की बहुत सारी शुभकामनाएं दिखे बचपन एक इंसान के जीवन में सबसे इंपॉर्टेंट हिस्सा होता है बचपन क्योंकि बचपन लाइक आरबीएस मतलब वह जो एक वृक्ष है बड़ा उसके जो जड़ है वह वह वह मजबूत है तो वृक्ष जो है वह एकदम मजबूत और सॉलिड होता है उसको आंधी आंधी कुछ नहीं मिटा सकती है सिमिलरली अगर आपका बचपन अच्छा गया है गया है और अगर आपको कोई भी समय अगर आपको बहुत ज्यादा गहरा सदमा और घरेलू तरीके से या फिर अपनी कक्षा में पाठशाला में आपको कहीं भी लाइफ में तकलीफ नहीं अगर नहीं हो तो आगे जाकर आपको आपके लाइफ में क्लेरिटी होती है कम पर 2:00 उन लोग जिनको बहुत ज्यादा कुछ साइकोलॉजिकली मेंटली काफी कुछ झेलना पड़ा है उन उनसे बेहतर होता है कंडीशन जिनका चाइल्डहुड स्मूद हुआ होता है तो इसीलिए बचपना मेंटेन करना बहुत नर्सरी है लोगों में और इसके लिए अगर कोई कानून अगर निकाला तो मेरे हिसाब से तो निकालना चाहिए क्योंकि जिन लोगों को भी मैंने जिन से बातचीत की है जिन से जिनका जिनको ट्वीट किया है जिनसे इंटरेक्शंस हुई है मेरी यह मैंने अक्सर देखा हुआ है कि उनके बचपन में बचपन के मेमोरी जो है उनको आज तक तकलीफ दे रहे हैं तो दूसरे पड़ोसी नहीं मैं तो यह चाहूंगी कि बचपन जो है वह सॉलिड होना बहुत जरूरी है और बचपना नहीं जाना चाहिए और बच्चे का जो फर्स्ट 10 ईयर्स 10:00 12 साल जो है वह बहुत अच्छा होना चाहिए तो इसका ख्याल उनके इर्द-गिर्द जो है सबको रखना बिल्कुल जरूरी है
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बच्चों के जो प्रॉब्लम्स होते हैं क्या कानून हजारों लेकिन प्रॉब्लम होते हैं परिस्थितियां ट्रेन टिकट प्राइस इन अप
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नहीं मैं आपसे बिल्कुल सहमत हूं तो होना चाहिए लेकिन बच्चों के 2 दर्शनीय 22 की शताब्दी है कंप्यूटर का युग है मानव का मस्तिष्क कंप्यूटर से भी तेज चलने लगा तुम देखते हैं छोटे छोटे बच्चे जो 3344 साल के हैं वह मोबाइलों को पांच मोबाइलों को पूरा चला देते हैं इसका मतलब आज की जेनरेशन है न्यू बच्चे जो हैं उनका माइंड बहुत तेज है फास्ट है इसलिए बच्चों आज बच्चों का बचपन छिनता जा रहा है अब आप देखें किंडर गार्डन पद्धति में देखा मैंने एलकेजी यूकेजी की बुक से देखी और छोटे 3344 साल के बच्चे उन पर इतनी सारी किताबों का बोल अब उसमें क्या समझेंगे क्योंकि उस समय तो क्योंकि पहले तो यह था कि 5 साल का बच्चा जब रोता था यह 6 साल का बच्चा होता तब तक उसे सरकारी स्कूल में एडमिशन कराया जाता था वह भी छोटी-छोटी किताबों से पहले उस कौन-कौन पकाए जाते थे जाते थे उसकी होती है क्योंकि यह दौर कंपटीशन का इसलिए बच्चों का बचपन ही चलता चला गया आज उनके कंधों पर आप देखते हैं कितनी सारी बुक्स ओं का बोल चुका है क्योंकि इसका स्टैंडर्ड बहुत बढ़ा दिया अब छठी क्लास की इंग्लिश आप देखें तो मैं सूत्रों आज का टाइम तो सीनियर वाला विद्यार्थी उसको नहीं कर सकता लेकिन स्टैंडर्ड शेरों के बच्चे तू तो कर लेते क्यों कर लेते क्योंकि गार्डन क्वालिफाइड हैं तो वह पहले पहले लेसन घर पर पढ़ाते हैं फिर भी ट्यूशन पर पढ़ने जाता है और दो बार पढ़ने के बाद भी स्कूल में जाता है तो तीसरी बार को स्कूल से तैयारी करता है तो इसलिए शेयरों के बच्चे गंदे तेल के दामों के बच्चे ना तो उन बच्चों के पास इन 12 महीना को तैयारी कर पाते हैं
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ऋषि उम्र का निर्धारण करने का मतलब यह तो बिल्कुल भी नहीं है कि आप उनको गर्भ धारण करेंगे तो उससे छोटी उम्र के बच्चे जुर्म नहीं करेंगे जहां तक मेरा सवाल है ना तो मुझे ख्याल एक निर्धारित की गई है बचपन की दुखी घमंडी कर रखी है वह 18 साल से पहले आपको जो नहीं समझा जाएगा तो वह इस साइकोलॉजिकल फैक्ट को देखते हुए उसका नाम को बनाया गया है अगर आप और उसको हटा देंगे तो जाहिर है आप कुछ लोग उनके अंदर का पर जरूर जाएंगे पर इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि उससे कम ऐज के बच्चे यह जो नहीं करेंगे अगर आपने सुना हो कि किस तरह से एक स्कूल के बच्चे ने अपने ही जूनियर को मार डाला वॉशरूम में उसका कभी वडाला तू क्या वह बचपना खराब तो नहीं ऐसा नहीं है इस बच्चे की आखिरकार आप कब तक निर्धारित करते रहेंगे कानूनों के अंदर स्कूल आते रहेंगे मुझे लगता है यहां पर दिक्कत मोरालिटी में आ रही है पढ़ाई लिखाई और उनके चीजों को समझने के तरीके में आ रही है मां-बाप की इग्नोरेंस पर आ रही है इसके अलावा बच्चों की आपस की दोस्ती यारी और जो चीजें देख रहे हैं जो टीवी न्यूज़ से उनको देखने का मिल रहा है वह चीज ऊपर आ रही है हम उसके लिए धारणा जरूर कर सकते हैं पर उनकी उम्र का निर्धारण मुझे नहीं लगता कि वह जुर्म करने में कोई कमी लाएगा
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जैसे कि आपने पूछा कि क्या इस समय नहीं आ गया इस बच्चों के बचपन को बचाने के लिए उम्र का निदान करने आने वाले हैं तो फिर किस चीज की उम्र की बात कर रहे हैं वहां की क्लियर नहीं है अगर आप बात कर रहे हैं कि जो बच्चों की जो बचपन है जो खेलने खुलने का टाइम होता है वह ने कहीं बर्बाद हो रहा है या जो भी टेक्नोलॉजी के माध्यम से बच्चे ज्यादा आजकल गेम्स में कंप्यूटर कैसे ज्यादा बिजी होते हैं मतलब खेलने की वजह से बाहर जो शारीरिक मेहनत होती है उसकी वजह तो इस चीज की बात कर रहे तो नहीं किया सब लोगों को खुद का डिसीजन लेने का अधिकार हम यह प्रीत कर सकते हैं कि बच्चों को सही तरीके से उनका बचपन जीने का जो तरीका है वह सही किया जाओगे लेकिन समय कैसे चेंज होता है उसे उसे लोगों की सोच बनती है और लोग जो है अलग तरीके से सोचते हैं कि हम लोगों ने या जो हमारे पहले जो है बचपन जिससे इंजॉय किया वह सभी वैसे बचपन नहीं लोग जा रहे हैं जो बच्चे को नहीं मिल रहा है सब ठीक है तो यह जनरेशन गैप चंद्र सिंह चेंज होने का नशा हो रहा है तो हम इस पर भी कोई ठोस कानून नहीं बना सकते कि मैं कमिंग हराने के बाद से सहमत नहीं हूं कि कोई कानून बना दें कि प्रतिबंध लगाया यह तो नहीं किया जाना चाहिए कि सब को अपने तरीके से जीने का हक है
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समाज की आज की शिक्षा पद्धति को देखते हुए यह एक बहुत ही बेहतरीन सवाल है कि बच्चों के बचपन को बचाने के लिए उम्र का निर्धारण करना अनिवार्य है बिल्कुल आज हम 3 वर्ष से कम के बच्चों को भी बस्ता लेकर स्कूल भेज देते हैं पर हमें यह जानना होगा कि हमारे भारत में भारत का भी सोने की चिड़िया हुआ करती थी जिसमें उस समय गुरुकुल पद्धति चलती थी उस भारत में क्या होता था हमारे गुरुकुल एक ऐसे स्कूल थे जिसमें उस समय 5 वर्ष से कम के बच्चों को पहली बात तो ए ऐडमिशन ही नहीं लिया जाता था और 5 से 7 वर्ष के बच्चों के लिए सिर्फ एक ऑब्जर्वेटरी क्लास लगती थी जिसमें उन्हें अलग अलग तरीके के पास दिए जाते थे आज उनकी रुचि को जाना जा सके और उसी उसी में ही उनको आगे बढ़ाने के लिए प्रेरणा दी जा सके आपको यह जानकर ताज्जुब होगी कि उस समय भारत में 700000 गांव में से सात लाख गुरुकुल हुआ करते थे जो बगैर बिल्डिंग के चलते थे आज हमारे हर गांव में स्कूल में ही है आप देखें तो हमारी शिक्षा पद्धति जब बहुत मजबूत हुआ करती थी चोरी में भी प्रैक्टिकली भी और संसाधनों में थी तब हमारे देश समृद्ध था सोने की चिड़िया थी आज ऐसा नहीं है आज हमारे पास रोड से बिल्डिंग के हैं वह तो है भौतिक चीजें तो है बट जो आध्यात्मिक चीजें हमारा आध्यात्मिक ज्ञान नष्ट हो चुका है हमारा इतिहास चला दिया गया है इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में लिखे गए स्वर्ण अक्षरों पर हमें हमारे ही देश के बहुत से लोगों को यह चीज नहीं मालूम तो हम जब यह मानने की कोशिश करेंगे और जानने लगेंगे तो हम इस बात को स्वीकार करेंगे कि बच्चों को 5 साल से पहले स्कूल नहीं भेजना चाहिए और हमें इसके लिए ठोस और मजबूत कदम उठाने की एकदम शीघ्र अतिशीघ्र आवश्यकता आवश्यकता है और यह सरकार का ही काम है और सरकार इसे बहुत अनोखे तरह से आगे बढ़ा सकती है
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देख बिल्कुल ना के बच्चों के बचपन को बचाने के लिए कोई उम्र का निर्धारण होना ही चाहिए बिल्कुल यह जो आपने बात कही है सही चाहिए कि यहां तक कि TV देखने का कोई मूड होना चाहिए मोबाइल फोन यूज करने का कोई उम्र होना चाहिए उससे पहले ना बच्चों के हाथ में टीवी एंकर रिमोट आनी चाहिए ना मोबाइल फोन आना चाहिए नहीं फिर कोई भी ऐसा वीडियो कांटेक्ट या फिर से देखने को मिलनी चाहिए जिससे बच्चों की मानसिकता है वह बदलती है लेकिन हम उसका इंतजार क्यों कर रहे हैं कि ऐसा कोई कदम सरकार उठाएगी तभी हम इस पर काम करेंगे आप अपने पर्सनल लेवल पर काम कर सकते हैं अगर सरकार नहीं कहेगी कि हम अपना घर साफ ना रखे तो क्या लोग घर पर अपना झाड़ू पोछा फिर साफ करना बंद कर देंगे क्या सरकार अगर नहीं कहेगी कि खाना खाना जरूरी है तो क्या लोग खाना खाना छोड़ देंगे सांस लेना तो अपना बच्चा भी जो है अपने घर में जो बच्चा है वह भी आपके लिए इतना इंपोर्टेंट है जितना आपके घर पर साफ-सफाई आपका सांस लेना खाना जरूरी है तो आप अपने लेवल पर काम करे ना आप अपने बच्चों को टीवी से मोबाइल फोन से दूर रखें बाहर खेलने को भी देख फिजिकल कि इनके पर सही तरीके से गेम खेले तो यह अपने लेवल पर होना चाहिए ना कि बिल्कुल सत्य नेशनल लेवल पर नहीं होगा गवर्नमेंट इसके लिए कोई अनाउंसमेंट ना करें ग्रुप में ना करें तो हम यह नहीं करेंगे आज जो पिछले हफ्ते का पिछले हफ्ते का नरेंद्र मोदी का मन की बात का भाषण आया था उसमें भी मन नरेंद्र मोदी ने इसी बात का जिक्र किया था कि आजकल जो अपने देश के खेल है जिसे गुल्ली डंडा है कच्चे हैं और बहुत सारे गेम है जो कि विलुप्त होते जा रहे हैं जैसे तुम को बढ़ावा देते रहना चाहिए
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