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नमस्कार आपका प्रश्न है एक प्रकाशित लेखक के रूप में आप पर सिद्धि के साथ कैसे समायोजित हुए आपको बता दूं हमारा जो भी लेखन है या मैं जो भी पुस्तक लिखा हूं वह प्रसिद्धि के उद्देश्य नहीं लिखा मैं जब तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष आदि पर बहुत सारी पुस्तक बाजार में देखा और बहुत सारे ऐसे ज्योतिष तंत्र मंत्र में रूचि रखने वाले व्यक्ति बाजार से उस पुस्तक को खरीदकर और साधना ही करने लगे कई साधक मेरे पास ऐसे भी आए जैसे वह पुस्तक बाजार से खरीदकर कुंडलिनी जागरण का प्रयोग किया कुछ ऐसे साधक थे जो योगिनी साधना किया कुछ ऐसे साधक तेजू यक्षिणी साधना किया कुछ ऐसे भी साधक थे जो मां बगलामुखी का साधना किया कुछ ऐसे भी साधक भूत प्रेत का साथ में किया किंतु जो भी बाजार में उपलब्ध किताबों को खरीदकर पुस्तकों को खरीदकर और साधना प्रारंभ किया उसमें से 99% ऐसे साधक थे 19th 7% ऐसे साधक मिले उनको सफलता के बदले और असफलता ही हाथ लगी और साथ ही कुछ साधक ऐसे भी उस में से थे जो विक्षिप्त अवस्था में पहुंच चुके थे एक ऐसे साधक थे जिसका उम्र मात्र 18 वर्ष था वह एक विद्यार्थी था इंटर का विद्यार्थी था और वह बाजार में उपलब्ध चमत्कारी पुस्तक खरीद कर साधना प्रारंभ किया और आज अपने पिता का एक पुत्र और वह भी मात्र 18 वर्ष स्थापित हो चुका अब समझ ही उस परिवार पर क्या गुजरता हूं आज जब मैं उसको देखता हूं तो मुझे बहुत तकलीफ होता है जो आखिर तंत्र मंत्र के लोग डरती क्यों है इसके पीछे कारण क्या है कुछ लोग तंत्र-मंत्र के नाम पर पैसा कमाते हैं किताब जो लिखते हैं उनका उद्देश्य यही होता है जो वह किताब से उस किताब से साधक को लाभ हो या नहीं लेकिन वह पुस्तक जितना बिकेगा उतना हमें तो लाभ होगा इसलिए बहुत सोचते सोचते मैं यह पुस्तक लिखा अंतर्मन धनपाल और खास करके मुझे यह सौभाग्य मेरे दादाजी भी तंत्र मंत्र के एक साधक के मेरे पिताजी भी तंत्र मंत्र की हार्दिक थे इस कारण से ग्रस्त परंपरागत 1 गुण मुझमें भी आया और हमको गुरुदेव के अलावा अपने परिवार में भी समय-समय पर सहयोग तंत्र-मंत्र के लिए मिलता रहा और उसी सबको संयोग का मैं तंत्र-मंत्र पर एक पुस्तक लिखा जिसका उद्देश्य मेरा सिर्फ यही था उस पुस्तक से साधक को किसी प्रकार की हानि नहीं हो वह निरंतर अपने साधना पथ पर आगे बढ़े मेरा उद्देश्य प्रसिद्धि नहीं था प्रसिद्धि तो इस स्थूल शरीर को चाहिए और यह थोड़ी सही है जो है तो नाच बान है जब आप आध्यात्मिक विकास करने लगेंगे आपको प्रसिद्धि नहीं चाहिए आपको मन नहीं चाहिए आपको सम्मान नहीं चाहिए आपको पद नहीं चाहिए आपको प्रतिष्ठा नहीं चाहिए आप जो भी यह गुप्त ज्ञान अपने पास संजो कर रखे हैं उसको सही समय पर सही आदमी के पास पहुंचा दें और मैं इसी उद्देश्य या कुछ तकलीफ साथ ही साथ में एक चेतावनी भी उस पुस्तक में दिया यह मात्र पुस्तक है इस पुस्तक को पढ़कर के कभी भी आप कोई प्रयोग मत करें हां अगर आप प्रयोग करना चाहते हैं तो आप किसी और के गुण क्या तांत्रिकों के निर्देशन में ही करें अगर संभव हो आप लेट से भी संपर्क करके आप यह साथ नहीं कर सकते हैं और मैं समय-समय पर बहुत ऐसे साधक हैं या बहुत ऐसे पाठक है जो हमसे संपर्क किया है और हम उनको सहायता किए हैं और समय-समय पर सहयोग कर रहे हैं और वह साधना पथ पर अग्रसर होती रहे आज मैं खुद इस बात से हूं जो विद्या अपने देश में लुप्त प्राय हो चुका था आज मैं कुछ व्यक्तियों के पास पहुंचा करके कुछ साधक इसका लाभ उठा रहे हैं यही मेरे लिए सबसे बड़ा फल है धन्यवाद
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